भारत में बेरोजगारी की चुनौतियां

भारत में बेरोजगारी की चुनौतियां


भारत में बेरोजगारी: एक जटिल चुनौती, समाधान के रास्ते



 विकास के बीच एक कठिन सवाल

भारत आज एक विरोधाभासी दौर से गुज़र रहा है। एक ओर हम दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था होने का गौरव प्राप्त करते हैं, वहीं दूसरी ओर लाखों युवाओं की आँखों में रोज़गार की तलाश में भटकन और निराशा साफ झलकती है। बेरोजगारी भारत की अर्थव्यवस्था के सामने मंडराता एक ऐसा साया है, जो न केवल आर्थिक विकास की गति को अवरुद्ध करता है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने के लिए भी एक गंभीर खतरा बनकर उभर रहा है। यह केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के सपनों, आकांक्षाओं और उसकी ऊर्जा से जुड़ा मुद्दा है।

बेरोजगारी के स्वरूप: केवल नौकरी का अभाव नहीं

भारत में बेरोजगारी की समस्या को समझने के लिए इसे सिर्फ 'नौकरी न मिलने' तक सीमित नहीं रखा जा सकता। इसके कई स्तर और प्रकार हैं:

1. चक्रीय बेरोजगारी: यह अर्थव्यवस्था में मंदी के दौरान उत्पन्न होती है। जब व्यवसाय सिकुड़ते हैं, तो नौकरियाँ कम हो जाती हैं। COVID-19 महामारी इसका एक प्रमुख उदाहरण था।
2. संरचनात्मक बेरोजगारी: यह सबसे गंभीर रूप है। इसका अर्थ है कि कौशल (Skills) और available नौकरियों के बीच एक बड़ा अंतराल है। शिक्षा प्रणाली अक्सर उद्योगों की मांग के अनुरूप प्रशिक्षण नहीं दे पाती, जिसके परिणामस्वरूप इंजीनियर बनने वाला युवा अगर बेरोजगार है, तो वह संरचनात्मक बेरोजगारी का शिकार है।
3. छिपी हुई बेरोजगारी: इससे अभिप्राय उस स्थिति से है where लोगों को देखने भर से लगता है कि वे कार्यरत हैं, परंतु वास्तव में उनकी उत्पादकता शून्य होती है। कृषि क्षेत्र में परिवार के सदस्यों का अतिरिक्त होना इसका सटीक उदाहरण है।
4. अल्प-रोजगार: यह वह स्थिति है where एक व्यक्ति को उसकी योग्यता और क्षमता से कम काम मिलता है, या फिर उसे पूरे काम के घंटे नहीं मिल पाते, जिससे उसकी आय अपर्याप्त रहती है।

समस्या के मूल कारण: जड़ों तक पहुँच


इस विशाल समस्या की जड़ें बहुत गहरी और बहुआयामी हैं:

· जनसंख्या विस्फोट: भारत की विशाल और युवा जनसंख्या एक 'जनसांख्यिकीय लाभांश' (Demographic Dividend) हो सकती है, लेकिन अगर इन युवाओं को रोजगार नहीं मिला, तो यही एक भयावह समस्या बन जाएगी। रोजगार सृजन की गति, जनसंख्या वृद्धि की गति से पीछे रह जाती है।
· शिक्षा प्रणाली में दोष: हमारी शिक्षा प्रणाली अब भी रटंत विद्या और डिग्री-केंद्रित बनी हुई है, जबकि उद्योगों को कौशल (Skills) और innovation की आवश्यकता है। व्यावसायिक प्रशिक्षण (Vocational Training) का अभाव एक बड़ी कमी है।
· कृषि पर अत्यधिक निर्भरता: भारत की लगभग 45% श्रमशक्ति कृषि में लगी है, जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में केवल 18% का योगदान देती है। इससे कृषि क्षेत्र में छिपी बेरोजगारी स्पष्ट झलकती है।
· विनिर्माण क्षेत्र का अपेक्षानुसार विकास न होना: 'मेक इन इंडिया' जैसे प्रयासों के बावजूद, विनिर्माण क्षेत्र expected रोजगार सृजन नहीं कर पाया है। यह क्षेत्र GDP में वह हिस्सेदारी नहीं ले पाया है जिसकी उम्मीद थी, जिससे रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं।
· कौशल का अंतर (Skill Gap): उद्योगों को जिस तरह के कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है और शिक्षण संस्थानों से निकलने वाले युवाओं के कौशल में एक बड़ा अंतराल है।
· महिला श्रम भागीदारी दर में कमी: विडंबना यह है कि विकास के साथ-साथ देश में महिला श्रम भागीदारी दर (Female Labour Force Participation Rate) में गिरावट आई है। सामाजिक रूढ़ियाँ, सुरक्षा की चिंता और अन्य कारणों से बड़ी संख्या में महिलाएं job market तक नहीं पहुँच पातीं।

सरकारी प्रयास और पहलें


सरकार ने इस चुनौती से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की हैं:

· मेक इन इंडिया: देश को विनिर्माण का एक global hub बनाने का लक्ष्य।
· स्किल इंडिया: युवाओं को industry-relevant skills प्रदान करने का अभियान।
· स्टार्टअप इंडिया: उद्यमशीलता को बढ़ावा देकर युवाओं को job seeker के बजाय job creator बनने के लिए प्रेरित करना।
· डिजिटल इंडिया: डिजिटल infrastructure को मजबूत करके नए रोजगार के अवसर पैदा करना।
· रोजगार गारंटी योजनाएँ: मनरेगा (MGNREGA) जैसी योजनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल श्रमिकों को आजीविका का साधन उपलब्ध कराती हैं।

आगे का रास्ता: एक सामूहिक प्रयास


बेरोजगारी की इस बहुआयामी समस्या का कोई एक जादुई इलाज नहीं है। इसके लिए एक बहु-स्तरीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

1. शिक्षा में क्रांतिकारी सुधार: शिक्षा प्रणाली को रटंत विद्या से हटाकर critical thinking, creativity और skill development पर केंद्रित करना होगा। school level से ही vocational training को integrate करना होगा।
2. एमएसएमई (MSME) क्षेत्र को मजबूती: सूक्ष्म, लघु और मध्यम enterprises देश में सबसे अधिक रोजगार पैदा करते हैं। इन्हें आसान ऋण, tax benefits और एक सहायक ecosystem प्रदान करना essential है।
3. श्रम सुधारों का कारगर क्रियान्वयन: नए labour codes को effective ढंग से लागू करना, जो formal employment को बढ़ावा देने और उद्योगों के लिए flexible बनाने में मदद कर सकते हैं।
4. नवीन क्षेत्रों पर ध्यान: renewable energy, artificial intelligence, data analytics, green economy और care economy जैसे emerging sectors में immense employment opportunities हैं। इनके लिए youth को तैयार करना होगा।
5. उद्योग-शिक्षा संस्थान सहयोग: industries और educational institutions के बीच एक मजबूत partnership होनी चाहिए ताकि curriculum को industry needs के according design किया जा सके और students को internship के opportunities मिल सकें।

निष्कर्ष: निराशा नहीं, संकल्प की आवश्यकता


भारत की बेरोजगारी की समस्या निस्संदेह गहन और जटिल है, लेकिन यह असंभव नहीं है। इसके समाधान के लिए दीर्घकालिक दृष्टि, राजनीतिक इच्छाशक्ति, निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी और शिक्षा में बुनियादी बदलाव की आवश्यकता है। हमारे पास दुनिया का सबसे युवा मानव संसाधन है, जो हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। इस पूंजी को एक अभिशाप बनने से रोकने और इसे विकास की इंजन में बदलने का समय अब है। आवश्यकता है एक ऐसे समन्वित और दृढ़ संकल्प की, जहाँ हर युवा की प्रतिभा को न केवल पहचान मिले, बल्कि उसे रोजगार के रूप में एक सार्थक दिशा भी प्राप्त हो। तभी भारत की वास्तविक economic potential का भंडार खुल पाएगा और हम एक समृद्ध और समावेशी भारत के सपने को साकार कर पाएंगे।

---

Comments