उमर खालिद के बेल ना मिलने को कैसे संजोएगा इतिहास
उमर खालिद के बेल ना मिलने को कैसे संजोएगा इतिहास : गौतम साह
उमर खालिद - एक ऐसा नाम जो हर क्रांतिकारी के घर में गूंजता है। जिनकी भाषणों से हुक्मरानों के पसीने छूट जाते हैं। जो गांधी, नेहरू और अंबेडकर के विचारधारा का अनुसरण करते हैं। जिन्होंने सीएए, एनआरसी कानून का पुरजोर तरीके से विरोध किया। जो संविधानवाद के पुजारी हैं - ऐसी अनेकों खूबियां हैं इस शख्स में। लेकिन, देश का दुर्भाग्य है कि इनको जेल में बंद रखा गया है। बिकी हुई न्याय व्यस्था इन्हें 2020 के दिल्ली दंगों का आरोपी मानती है। ध्यान से पढ़िए मैंने कहा कि आरोपी मानती है, दोषी नहीं। देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई कहते हैं कि 'बेल नियम है और जेल अपवाद है' यह एक वैधानिक सिद्धांत है। लेकिन, उमर के संदर्भ में यह बिल्कुल विपरीत है। यहां जेल नियम हो गया है।
पांच सालों से कैद उमर खालिद को आज यानी 2 सितंबर 2025 को बेल मिलनी थी। लेकिन, नहीं मिली। मिलेगी भी कैसे, वो मुसलमान जो हैं। प्रिय पाठकों - याद रखिए, आप चाहें किसी भी मजहब से हों कभी किसी दूसरे मजहब के लोगों से नफ़रत मत करना। उन्हें सताने का जुल्म मत करना, उनको छोटा मत समझना। खैर! उमर खालिद और उनके साथी फिर से उस तहखाने में कैद हो गए जिसे जिंदा लोगों का कब्रिस्तान कहा जाता है। मुझे गोरख पाण्डेय की एक कविता याद आ रही है जिसका शीर्षक है - 'उनका डर'
वो कहते हैं -
वे डरते हैंकिस चीज़ से डरते हैं वेतमाम धन-दौलतगोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद?वे डरते हैंकि एक दिननिहत्थे और ग़रीब लोगउनसे डरना बंद कर देंगे।
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